बिहार के छोटे से गाँव से निकल कर छतीसगढ़ के उद्योग जगत में छा जाने वाले वाले प्रवीण झा का जन्म अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ था. प्रवीण झा ने अत्यंत कठिन परिस्थितियों में बिहार के मधुबनी से स्कूली शिक्षा पूरी की। स्कूल तक पहुँचने के लिए उन्हें कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता, क्योंकि उनके गाँव तक न पक्की सड़क थी और न बस की सुविधा. गाँव में बिजली की सुविधा भी नहीं थी. लेकिन प्रवीण झा ने हार नहीं मानी. उन्होंने दीपक की रोशनी में पढ़ाई की क्योंकि वो समझते थे कि जीवन में सफलता हासिल करने के लिए शिक्षा हासिल करना बहुत जरूरी है।
जब प्रवीण झा दसवीं में थे तब उन्होंने पहली बार बिजली देखी। ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए दरभंगा पहुंचे तो उन्होंने तय कर लिया कि पढ़ाई खत्म होने के बाद अपना व्यवसाय करेंगे। लेकिन बिहार में वो माहौल नहीं था जहां उन्हें अपना व्यवसाय शुरू करने की सुविधा और सहायता मिल सके। इसलिए अपने सपनों को पूरा करने के लिए छत्तीसगढ़ पहुंचे। तब छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्य प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था।
बिहार से छत्तीसगढ़ पहुंचने के बाद शुरू हुआ प्रवीण झा का कठिन संघर्ष। आजीविका चलाने के लिए उन्हें बिलासपुर में जिंदल ग्रुप में मात्र 1000 रुपये के मासिक वेतन पर नौकरी करनी पड़ी। बस और टैक्सी का किराया बचाने के लिए साइकिल किराए पर ले कर सफर करते थे। उन दिनों साइकिल 4 रुपये प्रतिदिन के किराए पर मिलती थी। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने काम की बारीकियां सीखी और फिर आगे बढ़कर खनिज-संपदा से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ में कोयले का अपना कारोबार आरंभ किया।
कोयले की ढुलाई से शुरू हुआ उनका कारोबारी सफ़र आज फिल ग्रुप (Phil Group) के रूप के सबके सामने है. आज फिल ग्रुप छत्तीसगढ़ में कोयले और अन्य कच्चे माल का सबसे बड़ा सप्लायर है, जिसका सालाना कारोबार 280 करोड़ रुपये का है. आज प्रवीण झा की गिनती राज्य के अग्रणी उद्योगपतियों में होती है. उनके नेतृत्व में कंपनी लगातार अपना विस्तार कर रही है. प्रवीण झा समाजसेवा के कार्यों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. गरीबों की सहायता करने से वो कभी पीछे नहीं हटते. उनका मानना है कि कभी वो भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजरे थे. ऐसे में उनकी मदद से अगर कोई शिक्षित हो पाया, आगे बढ़ पाया, सफल हो पाया तो यह समाज को बदलने में उनका सबसे बड़ा योगदान होगा.